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Gaon Gaya Tha Main | Vishwanath Prasad Tiwari
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Gaon Gaya Tha Main | Vishwanath Prasad Tiwari

00:02:30
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गाँव गया था मैं | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी गाँव गया था मैंमेरे सामने कल्हारे हुए चने-सा आया गाँवअफसर नहीं था मैंन राजधानी का जबड़ामुझे स्वाद नहीं मिलायुवतियों के खुले उरोजोंऔर विवश होंठों मेंअँधेरे में ढिबरी- सा टिंमटिमा रहा था गाँवउड़े हुए रंग-सापुँछे हुए सिंदूर-सासूखे कुएँ-साजली हुई रोटी - साहँड़िया में खदबदाते कोदौ के दाने-सा गाँवबतिया रहे थे कुछ समझदार लोगअपने मवेशियों और पुआलऔर आर्द्रा और हस्त नक्षत्र के बारे मेंकउड़े के चारों ओरगॉँव गया था मैंमेरे सामने आएनहारी पर खटते बच्चेखाँसते बूढ़ेपुलिस से भयभीत युवकपति-पत्नी, बाप-बेटेखेत-मेड़, सास- पतोहजाति-कुजाति, पर - पट्टीदारीलेन-देन के झगड़ेभूल गया मैं बिरहा चैतीहोली दीवालीमेला ताजियाखेत की हरियालीमुझे याद आयासीमेंट और कंकरीट काअपना पुख्ता शांत शहरमैं परेशान थाकविता लिखना आसान थामेरे लिए गाँव परमैं भागा सुबह-सुबह हीबिना किसी को बताएपहली गाड़ी सेराजधानी की ओर।

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