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Vah Chehra | Kuldeep Kumar
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वह चेहरा | कुलदीप कुमारआज फिर दिखीं वे आँखेंकिसी और माथे के नीचेवैसी ही गहरी काली उदासफिर कहीं दिखे वे सांवले होंठअपनी ख़ामोशी में अकेलेकिन्हीं और आँखों के तलेझलकी पार्श्व से वही ठोड़ीदौड़कर बस पकड़ते हुएदेखे वे केशलाल बत्ती पर रुके-रुकेअब कभी नहीं दिखेगावह पूरा चेहरा?

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