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Sagar Se Milkar Jaise | Bhavani Prasad Mishra
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Sagar Se Milkar Jaise | Bhavani Prasad Mishra

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सागर से मिलकर जैसे / भवानीप्रसाद मिश्रसागर से मिलकर जैसेनदी खारी हो जाती हैतबीयत वैसे हीभारी हो जाती है मेरीसम्पन्नों से मिलकरव्यक्ति से मिलने काअनुभव नहीं होताऐसा नहीं लगताधारा से धारा जुड़ी हैएक सुगंधदूसरी सुगंध की ओर मुड़ी हैतो कहना चाहिएसम्पन्न व्यक्तिव्यक्ति नहीं हैवह सच्ची कोई अभिव्यक्तिनहीं हैकई बातों का जमाव हैसही किसी भीअस्तित्व का अभाव हैमैं उससे मिलकरअस्तित्वहीन हो जाता हूँदीनता मेरीबनावट का कोई तत्व नहीं हैफिर भी धनाढ्य से मिलकरमैं दीन हो जाता हूँ

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